आनंदी गुण गाऊ महाकाली वो भजुतन पावागढ़ वाली हो...
तड़के 4.15 बजे निकली मां अंबे की सवारी, श्रृद्धालुओं ने लगाए जयकारें
मां के दर्शन के लिए श्रृद्धालुओं का उमड़ा जनसैलाब
खरगोन। क्षत्रिय भावसार समाज द्वारा 407 वर्षों से चली आ रही खप्पर की परंपरा अंतर्गत मंगलवार शारदीय नवरात्र महाअष्टमी की मध्यरात्रि माता अंबे की सवारी निकली। माता अंबे एक हाथ में जलता हुआ खप्पर और दूसरे हाथ में तलवार लेकर निकली और भक्तों को दर्शन दिए। उपस्थित श्रृद्धालुओं ने मां अंबे के जयकारे लगाए। इस दौरान समाजजन द्वारा गाई गई निमाड़ी गरबियां 'आनंदी गुण गाऊ महाकाली वो भजुतन पावागढ़ वाली..., देवी म्हारी पावानी रे पटरानी भवानी बिन वारे लो..., सरवर हिंडोलो गिरवर बांध सावों भवानी मां...' पर मां अंबे करीब 30 मिनट तक रमती रही। खप्पर अयोजन समिति सदस्यों ने बताया कि हमारे पूर्वजों द्वारा श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रांगण में खप्पर की परंपरा एक विरासत के रूप में दी है, जिसका आज भी पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ निर्वहन किया जा रहा है। इस परंपरा अनोखी बात है कि इसमें स्वांग रखने वाले व्यक्ति एक ही पीढ़ी के होते हैं। कार्यक्रम की शुरूआत पंडित राजेंद्र पगारे के आचार्यत्व में सर्वप्रथम प्रकाश स्तंभ (झाड़) की विशेष पूजन-अर्चना हुई। तत्पश्चात प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी निकले। प्रातः 4.15 बजे ब्रह्म मुहूर्त में मां अंबे की सवारी निकली। उक्त कार्यक्रम भावसार मोहल्ला स्थित श्री सिद्वनाथ महादेव मंदिर प्रांगण (होली टेकड़ा) में प्रातः 3 बजे से प्रारंभ हुआ था।
यह निभा रहे है 407 वर्ष पुरानी परंपरा
खप्पर समिति सदस्यों ने बताया कि भावसार क्षत्रिय समाज द्वारा शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी एवं महानवमी में खप्पर निकालने की परंपरा चार सदियों पुरानी है। खप्पर जा यह 407वां वर्ष है। मां अंबे का स्वांग रचने वाले व्यक्ति एक ही पीढ़ी के रहते हैं। मां अंबे का स्वांग सोनू मोहन बादशाह व हरिओम मोहन बादशाह ने धारण किया। वही भगवान श्री गणेश का किरदार दिव्यांश भावसार व शशिकांत पटेल ने निभाया। श्री गणेश, हनुमानजी व मां अंबे का स्वांग रचने वाले सर्वप्रथम अधिष्ठाता भगवान श्री सिद्धनाथ महादेव जी के दर्शन करने के पश्चात ही निकलते हैं।
इन्होंने दी मृदंग व गरबियों की प्रस्तुति
खप्पर के अवसर पर मृदंग व झान पर गरबियों की प्रस्तुतियां राजु भावसार, अशोक भावसार, ऋषि भावसार, ऋतिक धारे, श्याम धारे, शैलेंद्र भावसार, आदित्य धारे, नकुल भावसार, सौरभ धारे, हर्ष भावसार, वैभव भावसार, आशुतोष भावसार, शिवम भावसार, सोम भावसार, सुमित भावसार आदि ने दी। गरबियों के माध्यम से मां अंबे की अगवानी की गई।
इनका रहा सराहनीय योगदान
खप्पर कार्यक्रम में राधेश्याम भावसार (मुनीमजी), मधु भावसार, मनोहर भावसार, श्रीकृष्ण धारे, गोविंद बादशाह, नरेंद्र भावसार, जगदीश भावसार, अरविंद यादव, अनिल धारे, भोला भावसार, रवि धारे, तेजेंद्र भावसार, नीरज भावसार सन्नी, धर्मेंद्र भावसार लाला, आशीष मल्लीवाल, प्रकाश भावसार (पत्रकार), चेतन भावसार, देवेंद्र भावसार, संतोष भावसार अंगू, विपुल भावसार, पवन भावसार का सराहनीय योगदान रहा।
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