मिट्टी की मूर्ति बना रहे कोलकाता के कलाकार

 

खरगोन। 19 सितम्बर से गणेश उत्सव की शुरुआत हो जाएगी। ऐसे में लोगों ने अपने अपने घरों में जहां प्रतिमा स्थापित करने की तैयारी की है तो वहीं पूजा पंडाल भी सजाने को लेकर उत्सव समितियां सक्रिय हो चुकी हैं। अब सबसे बड़ी बात यह है कि पूजा में मिट्टी की प्रतिमा ही शुभ मानी जाती है इस बात को सब जानते हैं पर रेट में सस्ता होने के कारण लोग पीओपी की मूर्ति खरीदकर घर ले आते हैं यह ठीक नहीं है। पीओपी की प्रतिमा को जब हम पानी में विसर्जन करते हैं तब वह पानी में घुलती नहीं है इससे पर्यावरण को खतरा है। यही कारण है कि कुछ जागरूक लोग अब मिट्टी की प्रतिमा को ही महत्व दे रहे हैं तो वहीं अभी भी पीओपी की प्रतिमाओं की भरमार बनी हुई है। डायवर्शन रोड पर चावला जी के कंम्पाऊन्ड में मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाले कलकत्ता ( बंगाल ) के नादिया जिले के ग्राम गोटपाड़ा के मूर्तिकार तापस कुमार पाल आकर्षक भगवान गणपति ओर दुर्गा माता की मूर्तिया बना रहे  हैं और लोगों को पर्यावरण के लिए जागरूक भी कर रहे हैं। मूर्तिकार तापस के साथ चार लोगों की टीम है सभी साथी बंगाल के है वे पहली बार खरगोन में मूर्ति बनाने के लिए आये है इससे पहले तापस दस वर्षों से भोपाल में मिट्टी की मूर्तियां बना रहे थे । कोलकाता से आये मूर्तिकार तापस भगवान गणेश और दुर्गा माता की मूर्तियों को आखिरी टच देने में लगे हुए हैं। नवरात्रि को देखते हुए इस समय मां दुर्गा की मूर्तियों पर सबसे ज्यादा काम हो रहा। भगवान की  की मूर्ति के लिय बैतूल से चारा बुलाया है ।  प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्ति बनाने में लागत कम लगती है और चमक ज्यादा रहती है तो वहीं मिट्टी की प्रतिमा को बनाने के बाद सुखाने में वक्त लगता है इसके बाद इसे आकर्षण देने के लिए रंगों से सजाया जाता है। मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने के लिए अप्रैल से ही तैयारी करनी पड़ती है, क्योंकि खेत की मिट्टी अप्रैल और मई में ही मिल पाती है। मूर्ति की अंतिम फिनिशिंग बंगाल की गंगा मिट्टी से की जाती है । पिछले 25 साल से मिट्टी की  मूर्ति बना रहे तापस का कहना है कि वे पिछले 25 सालों से गणपति ओर दुर्गा माता प्रतिमा बनाने का काम कर रहे हैं और इसमें खेत की मिट्टी का ही उपयोग करते हैं। इनका कहना है कि मिट्टी की प्रतिमा पूजन में शुभ मानी जाती है। भले ही इसमें लागत अधिक लगती है और समय व मेहनत ज्यादा लगता है, लेकिन जो लोग वास्तव में पूजा पाठ की विधि को जानते हैं समझते हैं वे मिट्टी की ही प्रतिमाओं की स्थापना करना पसंद करते हैं। मिट्टी की मूर्ति की कीमत पांच हजार से लेकर 25 हजार रु तक है। 

क्या बोलते हैं लोग

गणेश प्रतिमा हो या फिर दुर्गा प्रतिमा या अन्य किसी देवी देवता की प्रतिमा हो अगर हम स्थापना कर पूजा पाठ करना चाहते हैं तो मिट्टी की ही प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए क्योंकि यह पूजा योग्य होती है। प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिमाएं न तो पूजा योग्य हैं और न ही पर्यावरण के लिए अच्छी हैं। -प्रवीन परसाई, पुजारी, खरगोन 

जहां तक मुझे बुजुर्गों ने बताया है कि उसके मुताबिक मिट्टी की ही प्रतिमा पूजा के योग्य होती है। हमें गणेश प्रतिमा को स्थापित करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रतिमा मिट्टी की बनी हो। इस बात के लिए मैं अपने मित्रों को भी बोलता हूं और वे सभी मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करते हैं। -संजय पाराशर, समाजसेवी,खरगोन

 स्वच्छता का संदेश देंगी प्रतिमा

मूर्तिकारों का कहना है कि इस बार सभी मूर्ति मिट्टी की बनी हुई है। पीओपी की कोई भी मूर्ति नहीं है। मिट्टी की मूर्ति होने से अगर यह खंडित हों भी जाती है तो इन्हें नदी में प्रवाहित किया जा सकता है। मिट्टी की होने के कारण यह नदी में घुल जाएगी और इससे नदी में प्रदूषण भी नहीं होगा।


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